शून्य...
समय में न जाने कितनी शक्ति होती है कि सब बदल देता है... सब कुछ। हंसते हुए को रुला देता है वहीं रोते हुए को हंसाता भी है।
क्षण भर में कण-कण बदल जाता है... कुछ भी न बदले तो नए को पुराना ही कर देता है लेकिन बदलता सब कुछ है।
हर वस्तु स्वयं के भूत में बदलने के लिए अथक प्रयास करते हुए आगे बढ़ती जाती है। क्योंकि अपना कुछ होता ही नहीं, तो न कुछ मिलता है न कुछ खोता है। बस निरंतर गति से चलते सब एक दिन उसी शून्य में समा जाएंगे जहाँ सब शांत रहेगा न कुछ कर्म होगा न ही कुछ मन।
शायद समय से भी तेज अगर कुछ चलता है तो वो है मन... और समय क्योंकि सबसे ताकतवर होता है तो वो सबकुछ शांत करके उस मन को भी ग्रास बना लेता है जो कभी उससे भी तेज चलता था।
बाकी हमारे हाथ में कर्म ही होता है जो सार्थक तब बनता है जब समय के साथ चलते हुए हम सही राह पर चलते हैं।
- दिशा श्रीवास्तव
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